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वतन की होली – holi contest

narayani
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वतन की होली

की होली
मन सुबक उठा  और में जार जार रोली ,  

किस ख़ुशी में खो गयी वो बचपन की हंसी ठिठोली 

पूरण पोली
गुलाल और रंग से रंगी मेरी लहंगा चोली
छोटी छोटी सखियाँ, सूरत थी उनकी भोली 
देश से परदेश तक की यात्रा
क्या यही पाना था यहाँ आ कर
अपने वहीँ छूटें, घर वहीँ छूटा
ख़ुशी वहीँ छूटी, मन वहीँ छूटा
फिर क्या पाने की खातिर
में देश को छोड़, परदेश की होली ?  

                                             

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